Chilman Padi Ho Lakh Sarakti Zaroor Hai.

चिलमन पड़ी हो लाख सरकती ज़रूर है।

चिलमन पड़ी हो लाख सरकती ज़रूर है,
आशिक पे एक निगाह तो पड़ती ज़रूर है।

तुम लाख एहतियात से रखो शबाब को,
ये वो शराब है जो छलकती ज़रूर है।

सहमी हुई हैं आज नशेमन की बत्तियाँ,
बिजली कहीं करीब चमकती ज़रूर है।

ज़ेरे नकाब रहके भी छुपता नहीं शबाब,
खिलति है जब कली तो महकती ज़रूर है।

मंजिल की जुस्तजू में जवानी की ख़ैर हो,
दीवानी रास्तों पे भटकती ज़रूर है।

सब जानते हैं इसमें कोई फायदा नहीं,
दुनिया हसीन श़क्ल को तकती ज़रूर है।

कंगन हों चूड़ियाँ हों मगर आधी रात को,
कोई न कोई चीज़ खनकती ज़रूर है।

'कैसर' शराब छोड़े ज़माना गुज़र गया,
फिर आज मेरी तौबा बहकती ज़रूर है।

नोट:ये ग़ज़ल भी मुझे उसी पुरानी डायरी में मिली थी जिसमें "अनवर " द्वारा लिखी ग़ज़ल मिली थी।
इसकी आखरी दो लाइन में किसी" कैसर" का ज़िक्र आता है जिनके बारे में भी में कोई जानकारी नहीं जुटा सका,किसी को कुछ मालूमात हो तो ज़रूर जानकारी दें। 

Comments

Popular posts from this blog

Raksha Bandhan - Jiski Bahan Nahin Hoti.

Na Muhn Chupa Ke Jiye Hum Na Sar Jhuka Ke Jiye

The Seven Stages Of Love